कड़ियाँ बिखरी इधर उधर
जोड़ने वाला तो कोई और ही है
कहीं क्रोध बसा, कहीं मोह कमा
कहीं करूणा की नदियाँ बहती है
कहीं विश्वास से ही जीवन है
कहीं गुंजाइश शक की रहती है
आशा निराशा की भँवर से बाहर
आने का रास्ता तो आस्था ही है
कड़ियाँ तो बिखरी इधर उधर
जोड़ने वाला तो कोई और ही है
हार कब स्वीकार करता है नर
पर विजय की क्षमता भी कहाँ है
वेद पुराण पढ़े सभी मगर
सुखमय जीवन की डगर कहाँ है
कभी उतरता कभी चढ़ता ये
पर कालचक्र तो सतत चलता ही है
कड़ियाँ तो बिखरी इधर उधर
जोड़ने वाला तो कोई और ही है
कहाँ स्वर्ग है नर्क देखा किसने
कौन करता इसका लेखा जोखा
कर्म स्वयं के ही फलदायक
बाक़ी सब तो धोखा ही धोखा
पेट की आग में जलता मनुज
कुछ और तो इसे सूझता ही नहीं है
कड़ियाँ तो बिखरी इधर उधर
जोड़ने वाला तो कोई और ही है
अनगिन ज़ख़्म देता ये जीवन
पर मरहम तो मौत का लगता है
एक रास्ता बंद हो जाये अगर
दूजा स्वयं ही खुलता है
आना जाना तो क्रम सृष्टि का
सबके लिए ये होता समान ही है
कड़ियाँ तो बिखरी इधर उधर
जोड़ने वाला तो कोई और ही है
पटल के समस्त प्रबुद्ध सदस्यों को फक्कड़ का नमन
छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
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