व्यंजना के अनमोल दोहे
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मानव मन होता बड़ा , रखे बड़ी वह चाह ।
चाहत खातिर कर्म की , खोजे पल पल राह ।।
इसी राह में वह अगर , भटक अटकता आज ।
चैन वही खोता सभी , लक्ष्य रहे बस ताज ।।
ताज भले ही प्राप्त हो , आते मन के रोग ।
फँस जाता है फिर मनुज , रहता जीवन भोग ।।
भोग भाव मत पालना , बढ़ता मन का क्लेश ।
रहे ताज पोशी यहीं , मान ब्रह्म आदेश ।।
ब्रह्म भाव में ही रहो , उनको ही बस खोज ।
बाकी सब कुछ झूठ है , वही दिव्यता ओज ।।
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व्यंजना आनंद मिथ्या
अति सुन्दर दोहे
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