" सुखद " / चौपाई /
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सुखद क्षणों को रखा संजोए
जिन्हें याद कर नयना रोए
संवेदना जिवीत रहने दो
अश्रु नयन से अब बहने दो।
अश्रु जिवित रखता भावों को
सहलाता रहता घावों को
टीस बचाकर रखता जीवन
अश्रु और भावों का बंधन ।
भीतर बाहर रहे बराबर
सुख बरसे तब सकल चराचर
जनम सफल हो जाए अपना
रीत नीत मन सदा परखना।
सुखद कल्पना सुख की छाया
हाथ नही आते यह माया
भूल गया रचना कारक को
बोझ सौंप दे उस धारक को।
कौल बहुत पक्का है उनका
तू भी बन पक्का निज धुन का
सुख दुख तब समभाव रहेंगे
धार नदी बन सदा बहेंगे।
निर्मल निश्छल गंगा जल मे
सदा सुवासित नील कमल मे
मन के भाव संजोना भाई
बाकी कुशल रखें रघुराई ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.
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