गीत(16/14)
जन-जन में है व्यापित खुशियाँ,
शरद सुहावन बेला है।
धूप गुनगुनी अच्छी लगती,
अद्भुत कुदरत-खेला है।।
दिन में सूरज-किरणें भातीं,
रात में चंदा पूनम का।
गरम बिछौना होता मित्रों,
पूरा दुश्मन ठंडक का।
सब अलाव के आस-पास तो,
रहता रेलम-रेला है।।
अद्भुत कुदरत-खेला है।।
रबी-फसल से खेत सजे हैं,
अगल-बगल हरियाली है।
शरद-पूर्णिमा रात सुहानी,
रजनी भव्य उजाली है।
दृश्य प्राकृतिक मन हर लेते,
यद्यपि बहुत झमेला है।।
अद्भुत कुदरत-खेला है।।
कुछ खेतों में पीला रँग भी,
अपना रंग जमाता है।
पीला वसन पहन धरती का,
रूप अनोखा भाता है।
पीली फूली सब सरसों में,
सुंदरता का मेला है।।
अद्भुत कुदरत-खेला है।।
शरद सुहावन लगती उनको,
जिनको सुख-सुविधा मिलती।
उनको तो है कष्ट दायिनी,
जिनकी रजनी दुःख में कटती।
दिन तो कट जाता है लेकिन,
रजनी ठेलम-ठेला है।।
अद्भुत कुदरत-खेला है।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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