क्रमांक-102
विषय -" कवि केसरी सिंह बारहठ "
सिंह के समान थे साहसी, राजस्थान के अनुपम वीर।
चारण घराने के चतुर कवि, थे स्वभाव से धीर गम्भीर।
कृष्ण सिंह के सपूत केसरी,अठारह सौ बहत्तर में जन्मे।
शाहपुरा रियासत के देवपुरा में,चारण कुल में चरण पड़े।
बालपन से थे प्रतिभा के धनी, व्यक्तित्व गुणों की खान था।
भाषा साहित्य खगोल ज्योतिष, इतिहास में गहन ध्यान था।
बांग्ला मराठी संस्कृत गुजराती, हिंदी और राजस्थानी।
विविध भाषाओं का ज्ञान था उनको, सारी दुनिया जानी।
डिंगल-पिंगल में सृजन किया, अपनी थाती को मान दिया।
स्वाभिमानी वह देशभक्त, जीवन वसुधा पर वार दिया।। स्व पुत्र प्रताप भाई जोरावर संग, केसरिया बाना पहन लिया।
वे अद्भुत अनुपम वीर कवि, जिसकी कलम की धार बड़ी।
जब कलम चली बारहठ की, इतिहास में जोड़ी अमर कड़ी।
माटी का मान बचाने को, राणा का स्वाभिमान जगाने को।
की तेरह सोरठों की रचना,राजपूताने की आन बचाने को।
पढ़कर महाराणा सजग हुए, पुरखों की आन में अडिग हुए।
चेतावनी रा चुंगटया की बात खरी, राणा के दिल पर सीधी पड़ी।
राजपूताना के अमर कवि, केसरी सिंह बारहठ की बात बड़ी।
है नमन लेखनी को उनकी, देशभक्ति को कोटिशःवन्दन मेरा।
वो प्रकाशपुंज मरुधरा के लाल,कण-कण में गूँजे नाम तेरा
डॉ0निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
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