गीत(16/14)
खेतों से खलिहानों तक अब,
स्वर्ण फसल की बाली है।
जिन्हें देखकर हर किसान के,
मन में अति ख़ुशहाली है।।
देख फसल की बाली लटकी,
आशाओं के दीप जलें।
लक्ष्मी जी का हुआ आगमन,
अब तो मंज़िल सभी मिलें।
मन-विहंग उड़ नभ से कहता,
बिखरी छटा निराली है।।
मन में अति खुशहाली है।।
क़ुदरत का यह रूप निराला,
सबके मन को भाता है।
हरे-भरे पौधों की बाली,
निरख हृदय लहराता है।
भर जाए भंडार शीघ्र ही,
अब तो जो भी खाली है।।
मन में अति खुशहाली है।।
अथक परिश्रम से मिलती हैं,
शुभ फसलों की सौगातें।
काम खेत में करता रहता,
हर किसान भी दिन-रातें।
होता मुदित देख कर बाली,
करे सतत रखवाली है।।
मन में अति खुशहाली है।।
सूनी-सूनी सीवानों में,
सुख का आलम छाया है।
जिधर देखिए उधर दिखाई,
पड़े प्रकृति की माया है।
कृपा प्रकृति की बनी रहे तो,
जीवन में हरियाली है।।
मन में अति खुशहाली है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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