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शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,,,तरबतर अश्क से,,,,,,,,,,,,, 
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तरबतर अश्क से ज़िन्दगानी मेरी.।
दर्दो ग़म से भरी है, कहानी मेरी  ।।
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चूमती थी किनारों को जो प्यार से ।
खो गई उस लहर की  ऱवानी  मेरी ।।
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जाँ लुटाती थी जो, मुझपे शामो सहर।
है   ख़फा  आज़कल वो दीवानी मेरी ।।
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ज़ख्म ताज़े हरे हैं ,खिजाँओं   में   भी ।
हसरतें अब   नहीं  हैं,  नूरानी    मेरी ।।
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डस रही रात दिन मुझको  तन्हाइयाँ  ।
लग   रही बावरी  सी,  जवानी  मेरी ।।
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आ गये  बनके मेहमान,दुनियाँ के ग़म
उनको  भाने   लगी ,मेज़बानी    मेरी ।।
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दूर   साहिल ,उफनती   नदी वक्त   की 
है  लहर   तेज़  ,कश्ती    पुरानी   मेरी ।।
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शिवशंकर  तिवारी  ।
छत्तीसगढ़  ।
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