जरुरत है!
बिखरे सपने सजाने की जरुरत है,
नफरत जहां से मिटाने की जरुरत है।
तहस- नहस किया कोरोना जिंदगी,
कारोबार फिर बढ़ाने की जरुरत है।
मत भूलो अपने गाँव -घर का पता,
पतझड़ से उसे बचाने की जरुरत है।
बहाओ न आँसू जरा- सी ठेस पर तू,
हवा में समंदर उठाने की जरुरत है।
सभी लोग तो हैं इसी मिट्टी से उगे,
बस आईना दिखाने की जरुरत है।
बड़ा बनने की भूल कभी न कर तू,
कागजी-कश्ती चलाने की जरुरत है।
टपकने लगी है निगाहों से मस्ती,
अब वो दरिया बचाने की जरुरत है।
किसान बेचारे कितना सहें तकलीफ,
उनके अच्छे दिन आने की जरूरत है।
पानी के परिन्दे कब तक उड़ेंगे नभ,
हरियाली और बढ़ाने की जरुरत है।
खुशियाँ संभाले नहीं संभल रहीं,
इसे औरों पे लुटाने की जरुरत है।
मरना तय है बचकर जाओगे कहाँ,
पुण्य की गँठरी बढ़ाने की जरुरत है।
आखिरी साँस तक महको इस जहां में,
ईश्वर से लौ लगाने की जरुरत है।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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