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विजय कल्याणी तिवारी

" बात बात पर मन दुखता है "
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बात बात पर मन दुखता है
नयना नीर बहाते हैं
पीर बहुत व्याकुल करते हैं
हम खुद को समझाते हैं।

प्रश्न चिन्ह अपने जीने पर
रोज लगाना पड़ता है
भीतर का हर भाव नित्य ही
खुद से जी भर लड़ता है
साथ छोड़ जाने को आतुर
सारे रिश्ते नाते हैं
बात बात पर मन दुखता है
नयना नीर बहाते हैं।

सीमाओं से अधिक हुआ सब
यह बात किसे मै कहूं सखा
अर्थ हीन है बहना जानूं
फिर भी नियमित बहूं सखा
और नही कुछ कर पाते
पंथी इसी चल जाते हैं
बात बात पर मन दुखता है
नयना नीर बहाते हैं।

याद नही पड़ता है मुझको
मुख मुसकान कभी आए हों
नयन अश्रु के निर्झर निर्झर
अंतस को समझाए हों
दुनिया वालों का कहना
कहाँ कभी शरमाते हैं
बात बात पर मन दुखता है
नयना नीर बहाते हैं ।

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.

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