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मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
              *तेवर*
तेवर तृष्णा अरु तमस , परिवर्तन का सार ।
यह स्थिर मन विचलित करे , दृश्य रूप व्यवहार।
दृश्य रूप व्यवहार ,  यही पारा चढ़वाए ।
घातक होता रूप , बुद्धि को भ्रष्ट कराए ।
कह स्वतंत्र यह बात , शांत मन सच्चा जेवर ।
श्रेष्ठ मनुज का ज्ञान , बदल देता है तेवर ।।

तेवर मन का भाव है , बसा विचारों मूल ।
शांतिपूर्वक काज को ,  तेवर जाता भूल ।
तेवर जाता भूल , कमी को समझ न पाए ।
संबंधों को भूल  , अलग साम्राज्य बसाए ।
कह स्वतंत्र यह बात , वाह्य बस दिखे कलेवर ।
यही समाए रूप , ऊपरी होता तेवर ।।

तेवर से भौं जब तने , क्रोध त्वरित यह रंग ।
धैर्य धारणा लुप्त हो , कार्य करे बेढंग ।
कार्य करे बेढंग , क्रोध यह काम बिगाड़े ।
आशा का कर नाश , निराशा मन को ताड़े ।
कह स्वतंत्र यह बात , मिठाई जैसे घेवर ।
मधु मिश्रित सम भाव , दूर कटुता अरु तेवर ।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र*
*प्रयागराज*

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