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शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,उनकी इबादत के लिये,,,,,,,,,,, 
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चंद आँसू रख बचाकर, उस शहादत के लिये 
जो हुए कुर्बान हँसकर, इस विरासत के लिये  
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जोर तूफाँ का बहुत था, तेज़ आँधी थी मगर  
ले मशालें चल पड़े थे, वो बगावत के  लिये  
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गोलियाँ सीने पे खाईं ,मान परचम  का  रखे  
कर गये खुद को फ़ना सबकी हिफ़ाज़त के लिये 
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रोक ना पायी फिरंगी लश्करें  उनके  कदम  
बाँधकर निकले कफ़न जब वो ख़िलाफ़त के लिये 
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माँ की ममता, बाप का  जो आख़िरी उम्मीद थे 
अब  दगा मत कीजिये, उनसे सियासत के लिये  
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लग रहे गुमनाम दौरे  गर्दिशों में आजकल  
थे बहुत मशहूर वो भी, कल शराफत के लिये  
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छोड़ मस्जिद और मंदिर में खुदा, भगवान  को  
सर झुकाना  सीख लें ,इनकी इबादत के लिये 
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शिवशंकर  तिवारी 
छत्तीसगढ़  ।
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