सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नीलम वन्दना

*काशी की संस्कृति और परंपरा*

ये काशी की पावन संस्कृति 
और प्राचीन परंपरा है,
ध्यान और शांति पाने को
मन सब का यहीं ठहरा है।

आज है चांद की चांदनी
कार्तिक पूर्णिमा की रात,
माँ लक्ष्मी का मिलेगा प्यार
देवताओं का आशीर्वाद

आज के दिन गंगा में 
स्नान कर डुबकी लगाते ,
मां करें उद्धार सब का
दान कर सब पुण्य कमाते,

गुरूद्वारों में हैं चलते लंगर
घाटों पे बंटती खिचड़ी है
भूखा नहीं यहां कोई रहता
यह अन्नपूर्णा की नगरी है।

रविदास से राजघाट तक
सभी सजे हैं घाट यहां
लाखों दीपक जगमग करते
अमरावती से ठाठ यहां ।

झिलमिल करते लहरों पर 
दीपक, कविताएं लिखते हैं
हर प्रतिबिंब ॐ के जैसा
दैविक अक्षर दिखते हैं।

इन्हें देख यूं लगता जैसे
धरती पर उतरा आकाश,
देव भूमि को छोड़ देवता
रखते हैं काशी की आस।


आज गुरु नानक की जयंती
सन्तों सा जीवन धारण हो
मन पवित्र, आत्मा सर चित हो
आनंदम पूरा पारण हो।

हर-हर करती गंगा कहती,
मैली कभी उसे मत  करना 
भारत की  पहचान है गंगा,
मृत्यु मोक्ष गंगा तट करना।

गंगा शिव की जटा में भी है
गंगा तट पर है श्मशान
तीनों लोकों में ही करती
 मां गंगा ही मोक्ष प्रदान।
*नीलम वन्दना*

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879