स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया
मौका
मौका पड़ते ही मनुज , बदले जब व्यवहार ।
थाली का बैगन उसे , कहता है संसार ।।
कहता है संसार , व्यर्थ है मानव जीवन ।
दूजों का हित भूल , नहीं खुश होता है मन ।
कह स्वतंत्र यह बात , भाव का है यह चौका ।
धैर्य प्रेम के साथ , निभाते हैं सब मौका ।।
मौका पाकर ही बढ़े , विद्यार्थी विश्वास ।
करे परिश्रम वो अथक , तभी सफलता पास ।
तभी सफलता पास , स्वयं का नाम कमाए ।
कर्म सृष्टि का सार , कर्म गीता का भाए ।
कह स्वतंत्र यह बात , दाल पर जैसे छौका।
उन्नति की हो राह , श्रेष्ठ मंजिल दे मौका ।।
मौका जब भी पा सको , ज्ञान बढ़ाओ आप ।
अज्ञानी का ज्ञान ही , बनता है अभिशाप ।
बनता है अभिशाप , पतन की राह दिखाए ।
अन्तर्मन का ज्ञान , मनुज को ईश बनाए ।
कह स्वतंत्र यह बात , देखते कुत्ता भौका ।
एकलव्य का तीर , बंद कर पाया मौका ।।
मधु शंखधर 'स्वतंत्र
प्रयागराज
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