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मधु शंखधर स्वतंत्र

*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
              *उजाला*

हुआ उजाला देखकर , जाग रहे हैं लोग ।
उदित सूर्य को देखने , का दुर्लभ संयोग ।
का दुर्लभ संयोग , आधुनिक मानव सारे ।
भाव पुरातन भूल , सभ्यता किए किनारे ।
कह स्वतंत्र यह बात , सभी दे यही हवाला ।
हो प्रभात लो जान , यहाँ है हुआ उजाला ।।

वही उजाले से डरे , जिसके मन हो चोर ।
सर्प देखता पास जो , टोंट मारता मोर ।
टोंट मारता मोर , मार कर खा वह जाता ।
रहा विषैला सर्प , मगर विष काम न आता ।
कह स्वतंत्र यह बात , झूमते पी कर हाला ।
धरे नियंत्रण मनुज , देखते वही उजाला ।।

मात्र उजाला ही बने , जीवन का संदेश ।
व्यथित ह्रदय व्याकुल करे , मन का बने कलेश ।।
मन का बने कलेश , सोच से ही सुख पाए ।
नव आशा विश्वास , भाव मानव मन भाए ।
कह स्वतंत्र यह बात ,  मनुज बस वही निराला ।
उत्तम जिसकी सोच , सत्यता मात्र उजाला ।।
मधु शंखधर 'स्वतंत्र
प्रयागराज

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