इंसान बना करो!
खुदा की परछाई मत बना करो,
आदमी हो तुम, इंसान बना करो।
वक़्त की रफ़्तार बदल नहीं सकते,
अपने गाँव की पहचान बना करो।
हो क्या तुम, एक साँस का झोंका,
मरुभूमि का गुलिस्तां बना करो।
बेचकर खिजा तब वो खरीदा बहार,
उसके लक्ष्य की कमान बना करो।
कत्ल न करो किसी की खूबियाँ,
बल्कि विरासत की जुबान बना करो।
लूटमार, हत्या, डकैती ठीक नहीं,
बेहतर है सीमा पे जवान बना करो।
ख्वाबों के सहारे जीना आसान नहीं,
कभी किसी का मेहमान बना करो।
लिबास से कद तय कर रहे हैं लोग,
फ़रिश्ते से बढ़कर इंसान बना करो।
उतारते ही तिनका छप्पर रखते लोग,
हो सके उनका आसमान बना करो।
परियाँ आएँगी नींद के आंगन में,
सिरहाने बच्चों की दुकान रखा करो।
कंगाल न करो जल-जंगल, पहाड़ को,
राह में वृक्ष का वितान बना करो।
रोज मयकदे जाने की जरुरत ही क्या,
बस उसके घर का गुलदान बना करो।
रामकेश एम.यादव(कवि,साहित्यकार),मुंबई
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