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अनूप दीक्षित राही

अरमानों की चिता जला कर।
अपनी हस्ती खुद ही मिटा कर।।
*
निकल पड़े हम होकर बेफिक्रे।
यादें सभी हम दिल से मिटा कर।।
*
न जाने किस ओर जायेंगे।
कदम मेरे कुछ यूँ लडखडा कर।।
*
ज़िन्दगी का हर एक फैसला।
माना है हमने सिर को झुका कर।
*
कभी जला हूँ कभी बुझा हूँ।
कभी रहा हूँ मुँह को छुपा कर।।
*
जालिम बहुत बडी दुनिया है।
जीने न देगी ये सिर को उठा कर।
*
अनूप दीक्षित"राही
उन्नाव उ0प्र0

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