*"एक ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल"*
नाकाबिले एतबार ये ,
सांसे हैं बेवफ़ा!
लाखों उठाओ नाज़ पर,
करती ही हैं जफ़ा !
जब तक हैं पास तेरे,
तू एहतराम कर,
जाने कहां ये छोड़ दें ,
हो जाएं कब खफ़ा !!
फितरत नहीं है इनकी,
जो साथ दें सदा ही,
थम जायें चलते चलते,
इनका है फ़लसफ़ा!!
मालूम है सभी को,
दस्तूर ए दगा इनका,
रखतीं मुगालतों में,
लगतीं हैं बा- वफ़ा !!
सांसें जो चल रही हैं,
चलती रहे कलम भी,
संग संग रुकें ये दोनों,
बस एक ही दफ़ा !!
श्रीकांत त्रिवेदी "प्राञ्जल"
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