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रामकेश एम.यादव

आबाद रहे दुनिया!

देखो!  धरा पे  ढंग का इंसान  चाहिए,
आबाद रहे दुनिया तो किसान चाहिए।
बम, एटम-बम पे कभी  नाज न कर तू,
दरिया न बहे खून की समाधान चाहिए।

लड़ें  न कभी  आंगन की आपस में ईटें,
इस तरह का दोस्तों मुझे जहान चाहिए।
आए हो दुनिया में बनों मील का पत्थर,
जाने के  बाद  पांव का निशान चाहिए।

समझा न किसी को तलवार  की भाषा, 
सारे  जहां में प्यार की  जुबान  चाहिए।
सर- परस्त जो थे  वो कब  के चले गए,
पहलेवाला  फिर से  हिंदुस्तान  चाहिए।

नये -नये  बुलंदियों की  सीढ़ी  चढ़े देश,
हर दिल में वैसा ही  आसमान  चाहिए।
सपने  में भी  शेर  फाड़  के न खा सके,
न इस  तरह की मुझे  दास्तान  चाहिए।

दफ़्तर  को हैं बनाते  रिश्वत  की दुकान,
इस तरह का  हमको न दीवान  चाहिए।
रखे  जो  अपने  हृदय में गाँव की पीड़ा,
उगे   न  कोई  भूख  वो  प्रधान  चाहिए।

हवा के घर में  हो हर  किसी का मकान,
मुझको न  प्रदूषण का  वितान  चाहिए।
जिस्म की  मंडी पे कोई  जड़  दो ताला,
ऐसा धरा  पर  कोई  न  मचान  चाहिए।

रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार,मुंबई)

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