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योगिता चौरसिया प्रेमा

प्रेमा के प्रेमिल सृजन __
19/11/2021_

विधा-रूप घनाक्षरी
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  *सृजन शब्द-स्वागत*


माधो मेरे तुम आओ, आके कही मत जाओ,
मन धरे प्रेम देख , दर्शन की लगी आस ।

रटती सुबह शाम, और नहीं दूजा काम ,
जोगनी जो छाई रही, नैनन की बढ़ी प्यास ।।

 स्वागत हृदय करें, जीवंत खुशियाँ भरें , 
विनय है कर जोड़ , करती हूँ अरदास ।

एहसास नया हिय ,पाकर जो तुझे पिय, 
 सखियाँ बतियाँ बना, पा के तुझे बने खास ।।


---योगिता चौरसिया " प्रेमा "
    -----मंडला म.प्र.


प्रेमा के प्रेमिल सृजन __
18/11/2021_

विधा-रूप घनाक्षरी

*सृजन शब्द-गोरी*

राधा रानी देखो गोरी ,माधो संग खेले होरी,
भीगे तन-मन हारी, सताते हैं देखो श्याम ।।

छम-छम बाजे साज , पहनी पाजेब आज ,
भागे रूके नहीं भोरी, खेले सदा अभिराम ।।

इनकी महिमा न्यारी , लगती है जोड़ी प्यारी ।
मोहती हृदय देखो, देवता भी लेते नाम ।।

गली-गली घूमे गोरी , रंगती गुलाल छोरी,
माधो हाथ नहीं आये, ढूँढे वृंदावन धाम ।।

---योगिता चौरसिया "प्रेमा"
-----मंडला म.प्र.

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