जिन्दगी के मायने कितने बदल गये।
हम वक्त के साथ मे खुद ही ढल गये।।
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मेरे अपनो ने मुझे इतना मगरूर कर दिया।
नाकामियों को देखकर मेरे कदम सम्भल गये।।
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शिद्दत से जिसको चाहा वो उम्र भर न मिला।
अरमान अश्क बनके आँखों से निकल गये।।
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बस थी यही खता की हमने ऐतबार कर लिया।
हम तो फकत दिलासा मे यूँ ही बहल गये।।
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जाने कहां से गूंजे नग्मे मुहब्बत के।
सोये से ख्वाब दिल के आज फिर मचल गये।।
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साहब आसां नही है इतना मुहब्बत का ये सफर।
न जाने कितने आशिक यहां सिर के बल गये।।
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अनूप दीक्षित"राही
उन्नाव उ0प्र0
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