आंखे खुली रखो
जब तुम पथ पर चलते हो
तो खुली रखो
पैरो की आंखे
किसी पट्टी पर जब फिसलते हो
तो खुली रखो
हथेलियों की आंखे
कर्मेंद्रिया और ज्ञानेंद्रिया
हर पल तेरे साथ है
तभी मंजिल पाओगे।
कागज पर, कलम चलाते वक्त
खुली रखो
अपनी उंगलियों के शिकंजो की आंखे
गाड़ी ड्राइव करते वक्त
खुली रखो
पैर के पंजे की आंखे
यही तो सावधानियां है।
जब बुराइयां होती है
तो खुली रखो
कान की आंखे
अपमान की संभावना हो
तो खुली रखो
अपनी साख की आंखे
यही तो इंसानियत है।
अगर ज्ञान की कामना हो
तो खुली रखो
हृदय के अंदर की,पुस्तक की आंखे
फिर देखना
मेहनत निष्फल नही जायेगा।
नूतन लाल साहू
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