दर्द को मेरे न नुमाया कीजिए।
हो सके तो इसको छुपाया कीजिए।।
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दुनिया वाले देखेंगे इसमे भी ऐब भी।
यूँ बेकार वक्त न जाया कीजिए।।
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दूसरों के गिरेबां मे झांकने से पहले।
अपने वजूद पर ही अंगुली उठाया कीजिए।।
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ख्वाबों मे ऐसे न आया करो तुम मेरे।
कभी रुबरु भी आ जाया कीजिए।।
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आईने से क्यों पूछता है हकीकत मेरी।
कभी खुद को भी आईना दिखाया कीजिए।।
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बेतरतीबी मे बसर कर रहा था ज़िन्दगी।
कुछ सलीका हमे भी सिखाया कीजिए।।
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अनूप दीक्षित"राही
उन्नाव उ0प्र0
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