सिर्फ प्रीत चाहिए
हार चाहिए न मातु जीत चाहिए,
आपके हृदय की सिर्फ प्रीत चाहिए।
खोल के नयन निहारिए तो एक बार,
कालिमा से कलुषित धरा का आगार,
चेतना विलुप्त खिलखिला रहा काल,
मलय पवन संग फुफकारता है व्याल,
मोती चाहिए न मातु रोटी चाहिए,
मुक्त पाप से धरा वो ज्योति चाहिए।
मुस्कुराती नागफनी शूल बो रही,
रातरानी चुपके से मातु रो रही।
राग भूल कुहू कर्कश है बोलती,
पथ भूली ऋतुएं भी राह खोजती।
मीत चाहिए न मातु गीत चाहिए,
जीवन सतरंगी हो वो नीति चाहिए।
मान के नशे में झूमता है हर मनुज,
टांग दूसरों की खींचता है हर मनुज,
हर गली में साया खोजता शिकार है,
कनक आज लेता विष का आकार है।
कान्ति चाहिए न मातु क्रान्ति चाहिए,
सांस ले सके मन वो शान्ति चाहिए।।
रचना -
सीमा मिश्रा, बिन्दकी, फतेहपुर (उ० प्र०)
स्वरचित व सर्वाधिकार सुरक्षित
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