ऐ! आसमां वाले
ऐ! आसमांवाले कुछ तो अच्छा कर,
अब खुशियों से सबकी झोली तो भर।
आँसू औ गम से लोग दबे जा रहे,
उजड़ी हुई बस्ती की बुनियाद तो भर।
शहरों की फिजायें हैं उखड़ी -उखड़ी,
जंगलों के जिस्म में साँस तो भर।
ख्वाहिशों को खौफ़ कब तक सताए,
ख्वाबों के पांव में जोश तो भर।
मलाल तो बहुत है तेरे संसार से,
वीरान हुई दुनिया में जान तो भर।
कोई न भटके अपनी मंजिल से मालिक,
इन सबके अंदर वो साहस तो भर।
बुझे दुनिया में न जाने कितने चराग़,
जिंदों में रहमत, नेमत, बरकत तो भर।
रिश्तों की धूप में फिर चमकें चेहरे,
लोगों में जीने की आग तो भर।
सूख चुकी है जो साँसों की दरिया,
उन सूनी मांगों में सिंदूर तो भर।
तेरे खजाने में कमी ही क्या प्रभु,
फिर धरा आसमां में जवानी तो भर।
रामकेश एम. यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई
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