ज़िन्दगी ने अजब से मंजर दे दिए।
काँटों भरे न जाने कितने सफर दे दिए।।
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खता जो न की उसकी सजा मिल गई।
इल्जाम सारे के सारे हमारे सिर दे दिए।।
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जमाने की दुश्वारियों मे हम जाते बिखर।
शुक्रिया रब ने हमे चारागर दे दिए।।
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मायूसियाँ सदा हम पर हावी रहीं।
रंज-ओ-गम हमे इस कदर दे दिए।।
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ज़िन्दगी की उलझनो से फुर्सत कहाँ थी।
दुनिया की सारी फिकर दे दिए।।
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खामोश लबों ने पूछा जो सवाल।
मुनासिब सा उसका उत्तर दे दिए।।
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अनूप दीक्षित"राही
उन्नाव उ0प्र0
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