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डॉ.अमित कुमार दवे

©हर तरफ से तोड़-मरोड़कर चुपके से सब छिन गए..!
संवेदनाओं के ढाँढस बँधाते निष्ठुर तुम कहाँ चले गए?

  © डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा


इस विषदकाल में हे मेरे अन्तर्मन अब तो बताओ
छोड़ अकेला मुझे इस भँवर में तुम कहाँ चले गए?

कोरोना के कहर काल में स्वार्थी बनकर निकल गए,
जद्दोजहद जीवन की करते दूर तुम कहाँ चले गए !

अब तो सून ओ मनोबल मेरे यूँही क्यूँ छोडा मुझको?
अन्तर्बल की खोज में बेबस छोड़ तुम कहाँ चले गए?

हर तरफ से तोड़-मरोड़कर चुपके से सब छिन गए..!
संवेदनाओं के ढाँढस बँधाते निष्ठुर तुम कहाँ चले गए?

भौतिकता की अंध दौड़ में कोरी मशीन बनकर रह गए!
स्नेह-सहयोग-सेवा-समर्पण छोड़कर तुम कहाँ चले गए?

धैर्य-साहस और जीजिविषा के कारण ही मैं बचा रहा हूँ
अपनों के शुभाशयों का आज जीवन्त परिणाम रहा हूँ।।

दूर भले रहें नित अपने पर संबंध जीवंत बनाएँ रखना!
आस जीवन की बनवा रखकर यूँही तुम कहाँ चले गए?

ओ मेरे प्यारे अंतस् हारों ना चाहे आएँ लाखों भूचाल!
डरों ना तुम देख दानव भले अपने कहीं भी चले गए।।

काल कोई आए जीवन में आस साँस की नहीं छोड़ें बस
कोई साथ छोड़ें जग में पर साथ स्वयं का न छोड़ो तुम।।

संबंधों का सार बन जीवन का मज़बूत आधार बनकर..
आश्वस्त अपनों को रख भले कहीं भी जग में जाओ तुम

हर तरफ से तोड़-मरोड़कर चुपके से सब छिन गए..!
आस जीवन की बनवा रखकर यूँही तुम कहाँ चले गए?

सादर प्रस्तुति
© डॉ.अमित कुमार दवे, खड़गदा

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