बैरी अंकाल आगे रे
सावन भादो बरसा मांगे
अगहन पूस मांगे घाम
ये बरसा नो हे ददा
जी के जंजाल ऐ।
काला कमाबे,काला खाबे
जिनगी के नइये ठिकाना
बैरी अंकाल आगे रे।
मोर पिंजरा के मिट्ठू मैना
करत हावय शोर
रात म घुघवा घु घु बोले
सुन के हमर,ये तन के हाल
धक ले मोर जिवरा होवत हे
आगे मोला, तिजरा बुखार
ये बरसा नो हे ददा
जी के जंजाल ऐ
बैरी अंकाल आगे रे।
तय का करत हस भगवान
जाड़ म झड़ी लगा के
पानी ह गोंटा मारय
करा ला गिरा के।
कइसे बचही परान
सुरुज ला घाम दिखावन दे
जिनगी के नइये ठिकाना
हमर किसान बर
आफत के बरसात ऐ
ये बरसा नो हे ददा
जी के जंजाल ऐ
बैरी अंकाल आगे रे।
नूतन लाल साहू
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