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चेतना चितेरी

एक किसान के हृदय का मर्म
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दिन— रात वे खेतों पर ,कितना काम करते,
उनकी मेहनत को हम क्यों नहीं देखते?

खुद भूखा रहकर दूसरों के लिए अन्न उगाते,
क्या! हम उनको सही मूल्य दे पाते ।

उनसे सस्ते भाव में सौदा करते,
बाजारों में मनमानी भाव बेचते।

लेना है तो लो !नहीं तो जाओ,
समझेगा कौन उनके हृदय का मर्म ?
बच्चे भी ! उनके पढ़ना चाहते,
नामी स्कूलों की फीस है कितनी महंगी,
जितनी चादर हो, उतने ही पैर फैलाओ,
यह सोच दिन—रात खेतों पर काम करते।

खरीफ की फसल अभी कुछ राहत देगी,
लग जाते रबी की बुवाई में,
आंखों में चमक लिए
बारहों महीना करते हैं  कितना काम,
हम और आप क्यों उनसे मोलभाव करते?

किसानों का दर्द एक किसान ही जाने,
खेती में कितना लागत लगता है,
उनका मुनाफा कौन सोचे!
ताउम्र  जोड़ते —घटाते 
बीत जाती जिंदगी!
यह कहकर _‘आराम हराम है’
लग जाते खेतों पर।
दिन-रात खेतों पर वे कितना काम करते 
उनकी मेहनत को हम क्यों नहीं देखते?
आप सभी को किसान दिवस की हार्दिक बधाई।

(मौलिक )

चेतना चितेरी , प्रयागराज

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