/ नेह मयी बरसात करूँ /
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नेह मयी बरसात करूँ
खुल कर तुमसे बात करूँ।
इतना ओछा कभी नही था
जो पीछे से घात करूँ ।
दिन को दिन ही रहने दूं
बोलो कब कैसे रात करूँ।
जिनके जीवन अंधकार मे
उनके जीवन प्रात करूँ ।
जो है पास तुम्हारे बांटो
मैं नेह जगत से तात करूँ।
जिस बंधन में सुख दुख दोनों
वह बंधन बांध प्रभात करूँ ।
बहुत चैन से नींद आ जाए
यद्यपि या अर्थात करूँ ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.
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