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विजय कल्याणी तिवारी

/  सांसें मेरी  /
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सांसें मेरी टिकी आस मे
आँखें अब तेरी तलाश मे।

तुम तो निष्ठुर निकले पगले
पता नही क्यों इतना बदले।

अनायास तुम विदा हो गए
प्रिय, अनंत आकाश खो गए।

देकर नयन अश्रु की धारा
ढूंढ़ लिए तुम सहज किनारा।

हम अपना दुख किसे बताएं
तन चुभती हैं आज हवाएं ।

सुख शैशव मे मरा पड़ा है
बुद्धि भ्रांत है कील जड़ा है ।

इन नयनों मे तुम ही तुम हो
पर यथार्थ मे केवल गुम हो ।

नयन देखने तरस रहे हैं
सावन भादो बरस रहे हैं ।

दुख का भार उठाएं कैसे
तुम विहीन सुख लाएं कैसे।

नियति नटी बन नाच रहा है
रेख माथ के बांच रहा है ।

तुम जा पहुंचे चिर समाधि मे
अपना जीवन विकट व्याधि मे।

इस व्याधि से कौन निकालें
किसको अपना मीत बनालें ।

मुक्ति मांगता मन कलेश है
आश अंत हरि चरण शेष है ।

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.

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