*फिसलता जीवन*
फिसल रहा है जीवन पल पल
जाने किस दिन आए ना कल।
तेरा मेरा करते करते
जीवन की साझँ रही है ढल।
कौड़ी कौड़ी रुपया जोड़ा
हरदम लगता तुमको थोड़ा।
कैसा कैसा खेल रचाया
अपने सपनों को भी तोड़ा।
दुनिया से रहता बेगाना
रिश्तो का भी मर्म न जाना।
माया ने तुझको भरमाया
भूल गया सुकून से जीना।
अंत समय जब आ जाएगा
सब कुछ छोड़ यहीं जाएगा।
ठहर जा तू अब मन बावरे
ढेर राख का रह जाएगा।
🙏🌹 *सुप्रभात* 🌹🙏
*ऊषा जैन कोलकाता*
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