मैं चला वे भी चले
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मैं चला वे भी चले पर अकेले
ढूंढ़ता ही रह गया दुनिया के मेले।
भीड़ मे भी मैं अकेला रह गया
भाव के धारे अचानक बह गया ।
तेज थी धारा बहा कर ले गई
मोड़ पर कुछ और झटके दे गई ।
मैं नही समझा रूंआसा हो गया
इस भंवर को पार करते खो गया ।
बेबसी से अब टटोलूं आसरा
मुख झरे जब शब्द बोलूं आसरा ।
पर जगत निष्ठुर है यह जान कर
प्रश्न पूछे ईश्वरीय विधान पर ।
और बस मे तब नही था कुछ मेरे
सब लुटा कर पास आया हूं तेरे ।
तू शरण मे ले मुझे या त्याग दे
हो सके तो भक्ति का अनुराग दे ।
मूढ़ था जो व्यर्थ विषयों में पड़ा
दृष्टि गत है पाप से भरता घड़ा ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.
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