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विजय कल्याणी तिवारी

/ ईश का उपहार /
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सांस ही तो ईश का उपहार है
इस जगत में जीव का आधार है।

स्मरण रखना सदा इस बात को
रोक लोगे तब नयन बरसात को ।

जो दिया वापस उसे पाना अटल
जो जला कर राख कर दे वह अनल।

इस अनल कौन बच पाया कहो तो
स्वच्छ निर्मल धार नद बनकर बहो तो।

इस धार मे जग जीव का कल्याण है
जो डुबाया तन जलधि मे त्राण है ।

भूल कर भूला तो संकट बढ़ गया
आदमी इक भूल सूली चढ़ गया ।

आँख रोते हैं रो कर लाल लगते हैं
नींद कोसों दूर अब नित्य जगते हैं ।

चैन की सांसें गयीं मृत्यु से भयग्रस्त है
मन कुठाराघात मे देहयष्टि पस्त है ।

कर नही पाया उपहार का सम्मान वह
बांटता फिरता जगत मुफ्त का ज्ञान वह।

आज अँसुवन मे नहाता है पड़ा
टूटने को सांस मृत्यु सम्मुख है खड़ा।

आ रहा है स्मरण पर नही कुछ काम के
मूढ़ जीते जी हुआ रहीम के न राम के

विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग

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