रोज बजाए बाँसुरी
मनभावन माधुरी।
कैसे रूके राधा रानी
नाचे चली आई है ।।
सुनके तेरी बाँसुरी
हुई गोपियाँ बाँवरी।
भूल गई सुध बुध
दौड़ी चली आई है।।
हृदय स्पंदन मेरी
साँसो की लय हो मेरी।
एक तेरे ही नाम की
अलख जगाई है।।
चाह यही है मोहन
बस जाऊँ वृँदावन।
एक यही तो कामना
मन में समाई है।।
🙏🌹 *सुप्रभात* 🌹🙏
ऊषा जैन कोलकाता
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