/ गंतव्य /
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पाँँव जो गंतव्य तक जाता नही
वह कभी भी सत्य सुख पाता नही।
जो अहम स्थान देता है हृदय को
ढोंग करता है कभी ध्याता नही ।
है बहकता मीत नित सामर्थ्य मे
मानवीय गुंण कंत अपनाता नही ।
है अहंकारी पतन तब तय रहा
नम्रता का भाव मन आता नही ।
जिसका लेने में भरोसा है सदा ही
वह आदमी बनता कभी दाता नही।
जिंदगी के पुस्तकों के रंग को
न समझ पाया हो वह ज्ञाता नही।
जिस मनुज के मुख सदा मधुबैन है
उस मनुज को दुख भी दहलाता नही।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.
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