जिन्दगी का हर फैसला मुझे मंजूर हो गया।
सिर झुका कर मान लिया और खुद से दूर हो गया।।
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अपनी ही उलझनो मे उलझे रहे तमाम उम्र।
जमाने की उठती अंगुलियों से चकनाचूर हो गया।।
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वक्त की ठोकर लगी तो हर बात समझ आ गई।
वक्त के आगे आदमी कितना मजबूर हो गया।।
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रिश्ते सभी अजनबी हो गये हैं आजकल।
अपनापन भी देखिए कितना मगरुर हो गया।।
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मतलबी इस जहाँ मे पैसा ही है सबकुछ हुआ।
चन्द सिक्कों की खनक मे हर कोई मखमूर हो गया।।
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चेहरे पर चेहरा चढ़ा इंसान बहुरुपिया हुआ।
आईना भी ये देखकर चकनाचूर हो गया।।
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मखमूर-मतवाला
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अनूप दीक्षित"राही
उन्नाव उ0प्र0
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