*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
*आह्लादित*
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आह्लादित हो मन अगर , छाए नई उमंग ।
हो करके स्वच्छंद तब , होती सहज पतंग ।
होती सहज पतंग , गगन को छू कर आए ।
जीवन का आनंद , सुखद मन ही पा पाए ।
कह स्वतंत्र यह बात , भावना हो मर्यादित ।
जीवन का आधार , ह्रदय अति हो आह्लादित ।।
आह्लादित जब भी हुए , देवों के भी देव ।
दे देते वरदान तब , भोलेनाथ स्वमेव ।।
भोलेनाथ स्वमेव , बोल दे जो मन बमबम।
डमरू का हो नाद , जगत में शोभित डमडम ।
कह स्वतंत्र यह बात , भावना हो संवादित ।
सत्य शिवम् का जाप , करे मन को आह्लादित ।।
आह्लादित जीवन डगर , लक्ष्य निहित विश्वास ।
भाव भरे उपकार वो , होता सकल विकास ।।
होता सकल विकास , लक्ष्य तक यह पहुँचाए ।
बाँटे सबमें हर्ष , स्वयं भी वह हर्षाए ।
कह स्वतंत्र यह बात , रहे यदि मन आच्छादित ।
होगी कड़वी बात , कहाँ तब मन आह्लादित ।।
*मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*✒️
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