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शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,,,,,चाँद तारे ख़़फा हों,,,,,,,,,,
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चाँद तारे ख़फा हों कोई ग़म नहीं 
दीप जुगनू  से निस्बत निभाते चलें ।
दौरे गर्दिश के मारे हैं जो  राह   में  
हम गले से  उन्हें भी लगाते   चलें ।। 
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राह दुश्वार, मंज़िल  बहुत दूर   है 
वक्त  का  ये मसीहा भी मग़रूर है।।
ज़ख्म सीनें में, कदमों में छाले लिये 
हर  सपन  को ,हकीकत बनाते चलें।।
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हार कर जंग जीने की चाहत न  हो 
कौन है इस जहाँ में, जो आहत न हो।।
अश्क आँखों में, ओठों पे मुस्कान  ले 
राह  जीने की ,सबको   दिखाते चलें ।।
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मुफलिसी ही लिखीजिनकी तकदीर में 
हम  दिलायें  यकीं, उनको  तदबीर  में  
खिल उठेंगे  मरुस्थल में फिर से चमन 
हम  पसीना  ज़मीं  पर    बहाते  चलें 
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घुल गई नफरतों की, हवा में ज़हर  
मज़हबी लग रहे हैं, अमन के शहर 
हाथ जिनके जले, होम करते यहाँ 
उनके ज़ख्मों पे, मरहम लगाते चलें  
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शिवशंकर  तिवारी  ।
छत्तीसगढ़  ।
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