स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया
संवाहक
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संवाहक श्री कृष्ण जी , गीता का शुभ सार ।
बढ़ा प्रीत की रीत को , किए जगत उद्धार।
किए जगत उद्धार , मित्रवत् भाव समाए ।
कहे सुदामा श्रेष्ठ , त्याग का मर्म बताए ।
कह स्वतंत्र यह बात , भावना होती दाहक ।
बस दूजे के पास , यही बनते संवाहक ।।
संवाहक का कार्य ही , छूता दोनों छोर ।
माध्यम बनता वह सहज , बन जाता सिरमौर ।
बन जाता सिरमौर , कभी यह पाए ताना ।
मौलिक गुण से युक्त , बुने यह ताना बाना ।
कह स्वतंत्र यह बात , प्रथम यह बनता ग्राहक।
ग्रहण करे यह मूल , तभी बनता संवाहक ।।
संवाहक की धैर्यता , जीवन का सम्मान ।
भ्रमर भाव की मधुरता , पुष्प करे गुणगान ।
पुष्प करे गुणगान , दूर जब यह उड़ जाता ।
कहते हैं सब लोग , भ्रमर संदेशा लाता ।
कह स्वतंत्र यह बात , आज यह लगता नाहक ।
पौराणिक परिवेश , मुख्य होते संवाहक ।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज
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