आजकल का हाल
दिन दहाड़े भीड़ में भी
हो रहा है,आदमी का कत्ल
आदमी से आदमी
डरने लगा है आजकल।
प्यारा सा चमन में
तड़प रहा है,सौहाद्र यहां
टांग खींच रहें है, एक दूजे की
चिंता किसे है,देश की
आदमी से आदमी
डरने लगा है आजकल।
सांप्रदायिक शक्तियों ने
फिर से सर उठाया है,देश में
मर रहें है,अनेक निर्दोष
राम राज्य कैसे आयेगा
आदमी से आदमी
डरने लगा है आजकल।
अन्न उगाने वाले
भूखे पेट,सोने को मजबूर है
मेहनत करने वाले बुनकर
बिना कफन, मर जाते है
ये तो हाल है,आजकल का।
कपकपी सी रूंह में है
जल रहा है,तन बदन
आगे क्या होगा,कोई न जाने
क्या ये सभी,पल भर के है।
आदमी से आदमी
डरने लगा है आजकल
ये तो हाल है आजकल का।
नूतन लाल साहू
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें