एक सामयिक रचना कवि की देखें व आनन्द लें.... घूप देखाय धरा न कतौअबु बादर बूँदी हियाँ दिखलैहै।। भोरू औ साँझु परे कुहिरा चौपाया गतीनु बखानि न जैहैं।। पूस दिना सखि टूस कहैं रजनी सजनी कतनी बढि़ जैहैं।। काजु सबै कै जुगाढ़ चलैमतिया सखि चंचल काव गनैहै।।1।। सेंवारि फुलानि सखी सरसोंहरियाली धरा कै बखानि न जैहैं।। गफ्फानि देखाय खडी़ अरहर मानौ राह ऊ रोंकि के जाइऊ न देइहैं।। बथुआ औ चना खोंटहारि खडी़ कस लाइ घरा वै साग रचैहैं।। तोरि के गन्ना पेराइ के केर्रा मेहमानौ चंचल लाय पियैहैं।।2।। आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल।। 228001।। मोबाइल...8382821606,8853521398,9125519009।।
💐🙏🌞 सुप्रभातम्🌞🙏💐 दिनांकः ३०-१२-२०२१ दिवस: गुरुवार विधाः दोहा विषय: कल्याण शीताकुल कम्पित वदन,नमन ईश करबद्ध। मातु पिता गुरु चरण में,भक्ति प्रीति आबद्ध।। नया सबेरा शुभ किरण,नव विकास संकेत। हर्षित मन चहुँ प्रगति से,नवजीवन अनिकेत॥ हरित भरित खुशियाँ मुदित,खिले शान्ति मुस्कान। देशभक्ति स्नेहिल हृदय,राष्ट्र गान सम्मान।। खिले चमन माँ भारती,महके सुरभि विकास। धनी दीन के भेद बिन,मीत प्रीत विश्वास॥ सबका हो कल्याण जग,हो सबका सम्मान। पौरुष हो परमार्थ में, मिले ईश वरदान॥ कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक (स्वरचित) नई दिल्ली
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