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आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी चंचल

आशुकवि रमेश कुमार द्विवेदी, चंचल की आज की रचना निहारी जाय,सुझाव आमन्त्रित हैं......           सन् बीस बिता लाकडाउन मा,     टीकाकरण इक्कीसु मँझारी।।             समीप लखो सन् बाइस का,            ओमिक्रान दिखै जग आय बुझारी।।                                         जग बीचु घना यहू हिन्द मुला,            भगवान कृपालु थे अवढरदानी।।             दोआब जँहा माई गंग जमुन,             भारती मोरी महा बलिदानी।।         जेस हाल दिखा जग केर सदा,सबसे बढि़या यहु हिन्द कहा।।                                        नहि वैइसु करारी लचारी ढही,           जस इटली अमेरिका देश सहा।।       यहाँ तीर्थ बसी जँह काशी सदा,        अयोध्या औ मथुरा हु तीरथ भारी।।                                          सोमनाथ औ द्वारका हार विहार,      गातन पिण्ड गया जँह चारी।।            देवी औ देवतनु वास सदा,              विन्ध्य औ वैष्णवी धामु खरारी ।।         कवि चंचल कैइसु बेचैन बसैं,           ओमिक्रानौ ख्यालु रखैंगे मुरारी।।     ओमनगर, सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश।। 228001।। मोबाइल...8853521398,9125519009।।

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डा. नीलम

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रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879