,,,,,,,,,,,,,,,,,बाजार मत कीजे,,,,,,,,,,
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चलाकर तीर नज़रों से ज़िगर पे वार मत कीजे
इबादत की ज़गह है दिल, इसे बाजार मत कीजे
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तबस्सुम बाँटिये जीवन में फूलों की तरह हर सूँ
वफा खुशबू है गुलशन की, इसे बेज़ार मत कीजे
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धड़कने दीजिये साँसों में सरगम की तरह इसको
किसी टूटे तंबूरे की ,इसे झंकार मत कीजे
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छुपा रख्खे हैं सीने में मिले जो ज़ख्म जो तुमसे
हमारी इल्तज़ा है अब इसे, अखबार मत कीजे
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चले तुम तोड़कर वादे कसम इसका नहीं है ग़म
मोहब्बत में किसी से अब नया, इकरार मत कीजे
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ज़माना छोड़कर आये यहाँ चाहत में हम जिनके
वो कहते हैं, ज़माने में किसी से प्यार मत कीजे
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शिवशंकर तिवारी ।
छत्तीसगढ़ ।
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