विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो
मानवता हो लक्ष्य मनुज का कर्मनिष्ठ हो ज्ञान दो,
हंस वाहिनी मातु शारदे विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो।
अग्निकुंड की दीप ज्योति में भस्म करो दुष्कर्मों को,
नई भोर की नई रश्मि से जगा दो मां सत्कर्मों को।
रोग दोष से मुक्त धरा हो कल कल स्वर का दान दो,
हंस वाहिनी मातु शारदे विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो।
अनुरागी कर्तव्यों के हो वाणी से मृदुभाषी हो,
द्वेष भावना पनप न पाए चिंतन के अभिलाषी हो।
कांटे बनकर पग में चुभे न पुष्प बने वरदान दो,
हंस वाहिनी मातु शारदे विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो।
भ्रमित न हो मां दिशा ज्ञान दो अंधकार न छा पाए,
जड़ता विनष्ट हो जग से किरण भानु की छा जाए
मुक्त गगन और मुक्त धरा हो मानव को संज्ञान दो,
हंस वाहिनी मातु शारदे विमल बुद्धि सद्ज्ञान दो।
रचना -
सीमा मिश्रा , बिन्दकी फतेहपुर
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