*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
*आनंदित*
आनंदित यह मन करे , भाव सुखद नववर्ष ।
आंग्ल सभ्यता अनुसरण , माह जनवरी हर्ष ।
माह जनवरी हर्ष , यही सब अब तक जाने ।
यही आधुनिक रीत , जश्न नव पीढ़ी माने ।
कह स्वतंत्र यह बात , नियम होता आबंटित ।
लाए यह सौगात , ह्रदय करता आनंदित ।।
आनंदित करता सदा , सत्य सनातन धर्म ।
नूतन हिय संकल्प लें , चैत्रमास नव मर्म ।
चैत्र मास नव मर्म , प्रकृति नव रूप सुहाए ।
स्वर्ण वर्ण परिधान , धरा यह मन हर्षाए ।
कह स्वतंत्र यह बात , पुष्प जग करे सुगंधित ।
शोभित भारत वर्ष , धर्म यह मधु आनंदित ।।
आनंदित रवि का उदय , शोभित चंद्र प्रकाश ।
सकल जगत में व्याप्त है , फैला यह आकाश ।
फैला यह आकाश , समाहित करके तारे ।
ऐसे ही नव वर्ष , नये कुछ नियम हमारे ।
कह स्वतंत्र यह बात , नशा हो अब प्रतिबंधित ।
गुटखा मदिरा पान , त्याग मधु हो आनंदित ।।
*मधु शंखधर "स्वतंत्र"*
*प्रयागराज*
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें