/ जानते हैं सब /
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जानते हैं सब सकल संसार में
पाप धो गंगा जमन के धार में।
हो गया है, धो सहजता से उसे
क्यों दबा जाता है उसके भार में।
है सभी कुछ ध्यान से पढ़ ले
लौकिक अलौकिक बात गीता सार मे।
था नही तैयार उतरा क्यों भंवर मे
मूढ़ आकर रो रहा मझधार में ।
सांस थी तब तक नही खुश हो सका
आज खुश लगता लिपट कर हार मे ।
नित्य अपना कर्म कर क्या सोचता
लाभ हानि है लगा व्यापार मे ।
छोड़ दे स्वछंद विचरण हेत उसको
बंद करके रख न कारागार में ।
बांटने मे मत कभी संकोच करना
चूकना अनुचित जगत व्यवहार में।
लोग वैसे हैं नही दिखते हैं जैसे
कर रहे अपराध घुस सरकार में ।
विजय कल्याणी तिवारी
बिलासपुर छ.ग.
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