,,,,,,,,,,,,,अश्कों की तुरपाई ,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेले में तन्हाई है ।
यादों की परछाई है ।।
..............................................
ये पायल की सरगम भी
ख्वाबों की शहनाई है ।।
................................................
चाक ज़िगर को कर दे जो
वो कातिल अँगड़ाई है ।।
..............................................
कैसे उसपे यकीं करूँ।
वो भी तो हरजाई है ।।
...............................................
चैन सुबह , ना रात सुकूँ ।
सौतन सी ,पुरवाई है ।।
.............................................
धड़का है सौ बार ये दिल
वो जब भी, शरमाई है ।।
.............................................
दर्दो ग़म के चादर पे
अश्कों की तुरपाई है ।।
..............................................
शिवशंकर तिवारी ।
छत्तीसगढ़ ।
................................................
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें