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शिवशंकर तिवारी

,,,,,,,,,,,,हम मौज़े रवानी हैं ,,,,,,,,,,,,,,, 
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घनघोर अँधेरे में, चलकर दिखलायेंगे । 
तूफान के साये में, जलकर दिखलायेंगे 
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है वक्त तपिश का ये,हमको न बताओ तुम ।
हम दौरे खिजाँ में भी, खिलकर दिखलायेंगे  
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वो लाख सितम ढाये इस दिल पे मुसीबत में 
फौलाद बदन वाले, हँसकर दिखलायेंगे  
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सैय्यद परिंदों के पर चाहे कुतर  डाले ।
परवाज़ में दम हो तो, उड़कर दिखलायेंगे 
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 आफत की आतिश में शोलों की बारिश में  
कुन्दन की तरह हम भी, तपकर दिखलायेंगे  
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मुख मोड़ के दर्पण से, नज़रें न चुराओ तुम 
दिल की चाहत चेहरे, खुलकर बतलायेंगे  
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तुम रोक न पाओगे ,दीवार से बंदिश की  ।
हम मौजे रवानी हैं ,बहकर दिखलायेंगे  ।।
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शिवशंकर तिवारी
छत्तीसगढ़ 
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