प्रीत पदावली ----
14/01/2022
------ निहारते हैं -----
अब तक राहें निहारते हैं ।
बीते पल के शब्दों को चुन चुन ,
गीत बनाकर पुकारते हैं ।।
आने की जो बात कही थी ,
हर पथ कंटक बुहारते हैं ।
कभी सदन तो कभी स्वयं को ,
दर्पण सम्मुख सँवारते हैं ।।
मन मंदिर बैठी मूरत का ,
नित्य आरती उतारते हैं ।
ध्यान साधना केन्द्र बनाकर ,
अपना त्राटक निखारते हैं ।।
कठिन प्रतीक्षा की घड़ियों से ,
पिया संकल्प सुधारते हैं ।
कल की तरह आज भी सारा ,
संवेदी क्षुधा वारते हैं ।
सतत् प्रतीक्षा जीवन यात्रा ,
ये तो सदा स्वीकारते हैं ।
कैसा देश निठुर वह होगा ,
बैठे बैठे विचारते हैं ।
---- रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह ( छ. ग. )
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