*मधुमालती छंद*
*गंगा*
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गंगा सदा बहती सजल ।
यह चाँदनी सी है धवल।।
बहती चले अविरल नदी।
उद्भव कथा कहती सदी।।
वैदिक जगत की शान है ।
धारा सरस वरदान है ।
धारा अमरता सी बनी ।
आकार में अति है घनी ।
लहरें शुभम् पावन बहें।
जीवन सतत् है सच कहें।
बढ़ना हमारा कर्म है ।
मन शुद्धता शुभ धर्म है।।
आओ सभी पूजें इसे ।
जल के बिना जीवन किसे।
सोचो जरा संज्ञान लो ।
बस शुद्धता का भान लो।।
माता स्वरूपा हैं यहीं।
माँगे कहाँ कुछ भी कहीं ।
गंगा मृदुल जल धारती।
मधुमय नमन स्वीकारती ।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज
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